विकृति
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बढ़ रही है मानसिक विकृति वाले लोगों की संख्या

देशभर में कोलकाता बलात्कार-हत्याकांड की चर्चा के बीच महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर की एक शाला में दो मासूम छात्राओं के यौन शोषण का मामला सामने आया है। ये घटनाएँ समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ती मानसिक विकृति की पहचान हैं। एक बात स्पष्ट है कि चाहे हम कितने ही सख्त कानून क्यों न बना लें, विकृत मानसिकता वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ऐसी घटनाओं में जांच के साथ-साथ इस बात का भी गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद ऐसी मानसिक विकृति क्यों बढ़ रही है।

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मानसिक विकृति: सजा-ए-मौत का प्रावधान है, लेकिन नहीं पड़ा कोई फर्क

सबसे दुखद बात यह है कि ऐसी नृशंस घटनाओं की जांच और उन्हें रोकने के लिए सरकार का समर्थन करने के बजाय विभिन्न दल राजनीति कर रहे हैं। कोलकाता में मेडिकल छात्रा की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या से पूरा देश उसी तरह उबाल रहा है जैसे एक दशक पहले निर्भया बलात्कार-हत्या के बाद हुआ था। उसके बाद सख्त कानून बना, जिसमें ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान है, लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा। समाज में महिलाओं के खिलाफ मानसिक विकृति क्यों बढ़ती ही जा रही है.

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यौन शोषण के अपराधियों को सजा सुनाने में देरी

इस कानून में यह भी प्रावधान है कि महिलाओं पर किसी भी प्रकार के अत्याचार के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जाएंगी और अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा सुनाई जाएगी। हालांकि, यह कानून अब महज दिखावा बनकर रह गया है। अभी भी स्थिति पहले जैसी ही है। राजस्थान की एक निचली अदालत ने सौ से अधिक लड़कियों के यौन शोषण के अपराधियों को सजा सुनाने में 32 साल लगा दिए। अपराधी अब खुद को बचाने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेंगे, जिससे इसमें और 5-10 साल निकल जाएंगे।

राजस्थान के इस मामले की पीड़िताएं तीन दशक से अधिक समय से शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेल रही हैं। अगर आधा-अधूरा न्याय मिलने में 32 साल लग जाते हैं, तो उनके दिल पर कितना गहरा घाव हुआ होगा।

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मानसिक विकृति: अपराधियों के मन में भय क्यों नहीं पैदा हो रहा है?

कोलकाता मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार को कानून और व्यवस्था की ध्वस्त स्थिति के लिए कड़ी फटकार लगाई और कहा कि देश एक और बलात्कार की घटना का इंतजार नहीं कर सकता। जब सुप्रीम कोर्ट कोलकाता मामले पर चिंता व्यक्त कर रहा था, उसी समय पूरा महाराष्ट्र बदलापुर में दो मासूम बच्चियों के साथ स्कूल में हुए यौन अपराध पर आक्रोश जता रहा था। सवाल यह उठता है कि निर्भया बलात्कार-हत्याकांड के बाद सख्त कानून बनने के बावजूद अपराधियों के मन में भय क्यों नहीं पैदा हो रहा है।

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अपराधों की संख्या देशभर में बढ़ती जा रही है

बदलापुर घटना के दो हफ्ते पहले ठाणे जिले में एक कोचिंग क्लास के शिक्षक द्वारा कई छात्राओं के यौन शोषण का मामला सामने आया था। उस पर न तो कोई आंदोलन हुआ और न ही किसी पक्ष ने कोई प्रतिक्रिया दी। पिछले हफ्ते उत्तराखंड में एक निजी स्कूल की बस में एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, लेकिन उस पर भी कहीं कोई आक्रोश नहीं दिखा। कोलकाता की घटना को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग की जा रही है। अगर उनके इस्तीफे देने से महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराध थम जाते हैं, तो उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए जहां बलात्कार की घटनाएं होती हैं।

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महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध करने वाले यह नहीं देखते कि राज्य में किस पार्टी या गठबंधन की सरकार है। यह पूरा मामला मानसिक विकृति से जुड़ा हुआ है। कहीं व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण महिलाएं शारीरिक उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं, तो कहीं पारिवारिक विवाद में बदला लेने की भावना से ऐसे जघन्य अपराध होते हैं। चाहे छोटी बच्चियां हों, किशोरियां हों या युवतियां, कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि अपराधियों के मन से कानून का डर निकल चुका है। ऐसी मानसिक विकृति क्यों बढाती जा रही है, इसका अध्ययन होना चाहिए। ऐसी मानसिक विकृति कम कैसे हो, इस पर भी जोर देना चाहिए.

मानसिक विकृति: देश में दर्ज हो रहे हैं रोज 81 बलात्कार के मामले

देश में रोज 81 बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। तीस साल पहले यह संख्या 42 थी। निर्भया बलात्कार-हत्याकांड के समय देश में रोज 28 बलात्कार के मामले सामने आते थे। एक दशक में यह संख्या तीन गुना बढ़ गई है। बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अन्य सभी प्रकार के अत्याचारों को एक सामान्य अपराध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। समय आ गया है कि हम मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी करें और यह भी जांचें कि समाज का बदलता स्वरूप, परिवार संस्था के विघटन की प्रक्रिया, बचपन में मिलने वाले संस्कार और किशोरावस्था में परिवार के भावनात्मक समर्थन के खत्म होने जैसी प्रवृत्तियां भी इन जघन्य अपराधों के लिए कितनी जिम्मेदार हैं।

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