Essay: My Favorite Hindi Writer: [ रूपरेखा : (1) प्रस्तावना (2) लोकजीवन के कथाकार (3) कहानियों और उपन्यासों की विशेषताएँ (4) अनूठा चरित्र-चित्रण और भाषा की विशेषताएँ (5) राष्ट्रीय जागरण और समान-सुधार ही ध्येय (6) उपसंहार । ]
हिंदी में अनेक महान लेखक हैं। उन्होंने उत्तम कोटि के साहित्य का निर्माण कर सारे संसार में नाम कमाया है, किंतु इन सबमें मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं हिंदी कथा-साहित्य के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी ।
प्रेमचंद जी लोकजीवन के कथाकार हैं। किसानों, हरिजनों और दलितों के जीवन पर उन्होंने अपनी कलम चलाई है। किसानों के दुःख, उनके जीवन-संघर्ष, उन पर जमीनदारों के होने वाले जुल्म आदि को उन्होंने स्वाभाविक ढंग से पढ़े-लिखे समाज के सामने रखा है। उन्होंने भारतीय किसानों के अंधविश्वास, अशिक्षा, करुणा, प्रेम और सहानुभूति के भी वास्तविक चित्र प्रस्तुत किए हैं। इस प्रकार प्रेमचंद जी का साहित्य भारत के ग्रामीण जीवन का दर्पण है।
प्रेमचंद जी की कहानियाँ सरल, सरस और मार्मिक हैं। ‘कफन’, ‘बोध’, ‘ईदगाह’, ‘सुजान भगत’, ‘नमक का दारोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘दूध का दाम’, ‘पूस की रात’ आदि कहानियों में प्रेमचंद जी की स्वाभाविक और रोचक शैली के दर्शन होते हैं। ‘गोदान’ तो किसानों के जीवन का महाकाव्य ही है। ‘गबन’ में मध्यवर्ग के समाज का मार्मिक चित्र अंकित हुआ है। ‘रंगभूमि’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’ आदि उपन्यासों ने प्रेमचंद जी और उनकी कला को अमर बना दिया है। सचमुच, प्रेमचंद जी का साहित्य पढ़ने से सद्गुण और अच्छे संस्कार प्राप्त होते हैं।
प्रेमचंद जी का चरित्र-चित्रण अनूठा है। कथोपकथन भी बहुत स्वाभाविक और सुंदर है। चलती-फिरती मुहावरेदार भाषा उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। गांधी जी के विचारों का प्रेमचंद जी पर बहुत असर पड़ा है, सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन ने उनकी रचनाओं को काफी प्रभावित किया है।
प्रेमचंद जी के साहित्य में राष्ट्रीय जागरण का महान संदेश और हमारे सामाजिक जीवन के आदर्शों का निरूपण है। देशप्रेम के आदर्शों की झलक है। गुलामी का विरोध और राष्ट्र को उन्नत बनाने की प्रेरणा है। उनकी कलम जाति-पाँति, ऊँच-नीच के भेदभाव तथा प्रांतीयता आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने की सदा कोशिश करती रही थी। इस प्रकार साहित्यकार के साथ वे बहुत बड़े समाज-सुधारक भी थे।
लोकजीवन के ऐसे महान कथाकार और सच्चे साहित्यकार प्रेमचंद जी यदि मेरे प्रिय लेखक हों, तो इसमें क्या आश्चर्य ?