सजहन, जिसे मोरिंगा के नाम से भी जाना जाता है, एक तेजी से बढ़ने वाला और पोषण से भरपूर पेड़ है। यह पेड़ अपने औषधीय गुणों और पोषक तत्वों के कारण विश्वभर में लोकप्रिय है। सजहन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ें सभी उपयोगी होते हैं और इनका उपयोग विभिन्न खाद्य और औषधीय उत्पादों में किया जाता है। सजहन की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, और खेती की विधियों के बारे में जानना आवश्यक है ताकि इसकी फसल से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।
सजहन के चिकित्सीय और पोषण संबंधी गुण
सजहन अपने पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण अत्यधिक मूल्यवान है। इसमें विटामिन ए, सी, और ई, कैल्शियम, पोटेशियम, प्रोटीन, और एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं। इसके पत्तों और बीजों का उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, और सूजन के उपचार में किया जाता है। सजहन के पत्तों में मौजूद पोषक तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं, जिससे व्यक्ति विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित रहता है।
जलवायु और मिट्टी
सजहन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं इस प्रकार हैं:
तापमान: इसके विकास के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान सबसे अनुकूल होता है।
वर्षा: सालाना 250-3000 मि.मी. वर्षा पर्याप्त होती है, लेकिन यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
मिट्टी: सजहन विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त बलुई दोमट मिट्टी होती है जिसमें अच्छी जल निकासी हो। इसके लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए।
बीज और रोपण
सजहन की अच्छी फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन और उचित रोपण विधि महत्वपूर्ण है। बीज चयन के समय ताजे और स्वस्थ बीजों का चयन करें। रोपण का समय मानसून के शुरूआत में जून-जुलाई सबसे उपयुक्त है। सजहन की खेती बीजों और कलमों दोनों से की जा सकती है। बीजों को सीधे खेत में बोया जा सकता है या नर्सरी में उगाकर बाद में स्थानांतरित किया जा सकता है। बीजों को 2-3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिए, और प्रति हेक्टेयर 500-1000 ग्राम बीज की जरूरत होती है।
खेत की तैयारी
सजहन की खेती के लिए खेत की तैयारी के ये चरण महत्वपूर्ण हैं:
खेत की जुताई: मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए।
क्यारियों का निर्माण: खेत में समतल क्यारियां बनानी चाहिए ताकि जल निकासी सही तरीके से हो सके।
सजहन की फसल को पानी की आवश्यकता
सजहन की फसल को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन शुरूआती दौर में नियमित सिंचाई आवश्यक है। पहली सिंचाई रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए, और दूसरी सिंचाई 10-15 दिन बाद, जब पौधे जमने लगें। सूखे मौसम में आवश्यकतानुसार 2-3 सिंचाई करें।
रोग और कीट प्रबंधन
सजहन की फसल पर विभिन्न रोग और कीटों का हमला हो सकता है। फफूंद रोग से बचने के लिए बीज उपचार और फसल की नियमित जांच करें। कीटों जैसे एफिड, जैसिड, और अन्य कीटों के लिए नीम का तेल या अन्य जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें। फसल की नियमित जांच करें और किसी भी रोग या कीट के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें।
फसल की कटाई और संग्रहण
सजहन की फसल 6-8 महीनों में फलियां देने लगती है। जब फलियां हरी और मांसल हो जाएं, तब कटाई करनी चाहिए। पत्तियों को भी आवश्यकता अनुसार काटा जा सकता है। कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह से सुखाना चाहिए ताकि नमी कम हो सके। सुखाई गई फसल को सूखे और हवादार स्थान पर संग्रहित करें, बोरियों में भरकर भंडारण करें।
किसानों को आर्थिक लाभ
सजहन की खेती से किसानों को अच्छे आर्थिक लाभ मिल सकते हैं। इसमें कम निवेश के साथ उच्च उत्पादन और बेहतर बाजार मूल्य मिलता है। सजहन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ों की बढ़ती मांग और इनके पोषण और औषधीय गुणों के कारण यह फसल किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन गई है। सजहन की खेती न केवल पोषण संबंधी लाभ प्रदान करती है, बल्कि यह किसानों को आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाती है।
इस प्रकार, सजहन की खेती एक लाभकारी कृषि कार्य है जो न केवल स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है, बल्कि किसानों को भी आर्थिक रूप से समृद्ध बनाती है। सजहन की खेती के विभिन्न पहलुओं को समझकर और उचित विधियों का पालन करके, किसान इस फसल से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं।