बाल कहानी: समय का करें सदुपयोग
प्राचीन यूनान में सुकरात अपने ज्ञान और विद्वता के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थे। एक दिन, उनके पास एक परिचित व्यक्ति आया और बोला, “मैंने आपके एक मित्र के बारे में कुछ सुना है।” यह सुनकर सुकरात ने उस व्यक्ति को तुरंत रोका और कहा, “पहले हम एक छोटा सा परीक्षण करते हैं। इसे मैं ‘तीन कसौटियों का परीक्षण’ कहता हूँ।”
वह व्यक्ति थोड़ा चौंक गया और पूछा, “तीन कसौटियां? कैसी कसौटियां?” सुकरात ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, “पहली कसौटी है ‘सत्य की कसौटी’। क्या तुम सौ फीसदी दावे से कह सकते हो कि जो बात तुम मुझे बताने वाले हो, वह पूर्णत: सत्य है?”
वह व्यक्ति थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला, “नहीं, मैंने यह बात सुनी है, लेकिन पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हूँ।”
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“ठीक है,” सुकरात ने कहा, “तो इसका मतलब है कि तुम इस बात की सत्यता को लेकर आश्वस्त नहीं हो। अब दूसरी कसौटी पर ध्यान देते हैं, जिसे मैं ‘अच्छाई की कसौटी’ कहता हूँ। क्या जो कुछ तुम मुझे बताने वाले हो, उसमें कोई भलाई है?”
उस व्यक्ति ने सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं, बल्कि वह बात नकारात्मक है।”
“तो,” सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा, “तुम्हारी बात में न तो सत्य है और न ही भलाई। लेकिन हम अभी भी एक और कसौटी का परीक्षण कर सकते हैं। यह है ‘उपयोगिता की कसौटी’। जो बात तुम मुझे बताने वाले थे, क्या वह मेरे किसी काम की है?”
वह व्यक्ति अब थोड़ा असहज हो गया और बोला, “नहीं, ऐसा तो नहीं है।”
सुकरात ने शांतिपूर्वक कहा, “अगर वह बात न तो सत्य है, न भली, और न ही मेरे किसी काम की, तो मैं अपना कीमती समय उसे जानने में क्यों नष्ट करूं?”
सीख
समय का सदुपयोग करें। व्यर्थ की बातों में उलझकर अपना समय बर्बाद न करें। सुकरात की यह कथा हमें सिखाती है कि हमें किसी भी जानकारी को स्वीकार करने से पहले उसकी सत्यता, भलाई और उपयोगिता पर विचार करना चाहिए।
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सुकरात (Socrates) प्राचीन यूनान के एक प्रमुख दार्शनिक थे, जिन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक माना जाता है। उनका जन्म 469/470 ईसा पूर्व एथेन्स में हुआ था और उनकी मृत्यु 399 ईसा पूर्व में हुई थी। सुकरात ने स्वयं कोई लिखित कार्य नहीं छोड़ा; उनके विचार और शिक्षाएँ उनके शिष्यों, विशेष रूप से प्लेटो, द्वारा लिखे गए संवादों के माध्यम से ज्ञात होती हैं।
सुकरात के प्रमुख सिद्धांत और योगदान:
1. ज्ञान और नैतिकता: सुकरात ने माना कि सच्चा ज्ञान नैतिक आचरण की कुंजी है। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत नहीं करता; अगर कोई गलत करता है, तो वह केवल अज्ञानता के कारण होता है।
2. सुकराती पद्धति (Socratic Method): यह शिक्षण की एक विधि है जिसमें प्रश्नोत्तर के माध्यम से वार्तालाप किया जाता है। सुकरात ने लोगों से सवाल पूछकर उनके ज्ञान, मान्यताओं और विचारों की जांच की। इस पद्धति का उद्देश्य आत्म-ज्ञान को बढ़ावा देना और ज्ञान की गहराई में जाना था।
3. ज्ञान का नकारात्मक पहलू: सुकरात का एक प्रसिद्ध कथन था, “मैं केवल इतना जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता”। उन्होंने मानवीय ज्ञान की सीमाओं को पहचानने और अपने ज्ञान के बारे में विनम्र होने की आवश्यकता पर जोर दिया।
4. राजनीतिक और सामाजिक विचार: सुकरात ने एथेन्स के समाज और राजनीति की आलोचना की, खासकर उन नेताओं की, जो नैतिकता और न्याय से रहित थे। उनके विचारों और शिक्षाओं के कारण उन्हें समाज के लिए खतरा माना गया, और उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने और देवताओं का अनादर करने का आरोप लगाया गया।
5. मृत्यु: सुकरात को 399 ईसा पूर्व में मौत की सजा सुनाई गई थी। उन्हें हेमलॉक जहर पीने के लिए मजबूर किया गया था। उनकी मृत्यु ने उनके शिष्यों और भावी पीढ़ियों पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें एक नैतिक नायक के रूप में प्रस्तुत किया।
सुकरात का दर्शन आज भी जीवित है और उनके विचार आधुनिक दार्शनिक विमर्श और शिक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी शिक्षाएं और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।