अंगदान के बिना हर साल करीब चालीस हजार मरीज इलाज की प्रतीक्षा में अपनी जान गंवा देते हैं
भारत में अंगदान की स्थिति चिंताजनक है, जहां अंगदान की दर स्पेन जैसे छोटे राष्ट्र की तुलना में काफी कम है। प्रतिवर्ष पांच लाख लोगों के जीवन को बचाने के लिए अंगों की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल बावन हजार अंग ही प्राप्त हो पाते हैं। इस कमी के कारण, प्रतिवर्ष लगभग चालीस हजार मरीज प्रतीक्षा करते-करते अपनी जान गंवा देते हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि सार्थक प्रयास, जागरूकता और स्थानीय स्तर पर आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करने की बहुत आवश्यकता है।
अंगदान को बढ़ावा देने के लिए देश में जागरूक नागरिक और सामाजिक संस्थाएं प्रयास कर रही हैं, लेकिन शासकीय अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों से पर्याप्त सहयोग न मिलने के कारण ये प्रयास सफल नहीं हो पाते। नेत्रदान के क्षेत्र में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता आई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर सरकारी डॉक्टरों की उदासीनता, मृत्यु प्रमाण पत्र की आवश्यकता, और समय पर नेत्र विशेषज्ञ की अनुपलब्धता जैसे कारणों से नेत्रदान में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
अंगदान के बाद चार से छह घंटे के भीतर नेत्र, त्वचा आदि का प्रत्यारोपण किया जा सकता है
नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है, जिसे प्रशिक्षित नर्सिंग और पैरामेडिकल कर्मचारी भी कर सकते हैं। कुछ राज्यों ने पैरामेडिकल कर्मचारियों को यह अनुमति दी है, लेकिन कई राज्यों में अब भी नेत्र विशेषज्ञ की अनिवार्य उपस्थिति जैसे जटिल नियम बने हुए हैं। भारत में प्रतिवर्ष दो लाख व्यक्तियों को कोर्निया दान की आवश्यकता है, लेकिन दान प्रक्रिया की सख्ती और जागरूकता के अभाव में केवल पचास हजार कोर्निया ही उपलब्ध हो पाते हैं।
भारत में प्रतिवर्ष 50 हजार लिवर और 50 हजार किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन बमुश्किल 1700 किडनी और 700 लिवर ही उपलब्ध हो पाते हैं। दुर्घटनाओं में मस्तिष्क मृत्यु का शिकार हुए व्यक्तियों के नेत्र, त्वचा, और अन्य अंगों का दान किया जा सकता है, लेकिन पोस्टमार्टम की अनिवार्यता और अन्य जटिल प्रक्रियाएं अंगदान को बाधित करती हैं। अंगदान के बाद चार से छह घंटे के भीतर नेत्र, त्वचा आदि का दान किया जा सकता है। राज्य सरकारों, केंद्र सरकार, और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इस प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सकता है।
2019 में राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम के लिए 149.5 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था
वर्तमान में, अंगदान के मामले में भारत यूरोपीय देशों की तुलना में काफी पीछे है। ‘इंटरनेशनल रजिस्ट्री इन ऑर्गन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में मृत्यु के बाद अंगदान करने वालों की संख्या प्रति दस लाख पर इकतालीस है, जबकि भारत में यह संख्या मात्र 0.04 है। देश में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, जिनमें से सत्तर प्रतिशत मस्तिष्क मृत्यु का शिकार होते हैं और जिनके अंगदान की संभावना होती है।
अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने 2011 में कानून में संशोधन कर इसे व्यापक बनाया। देश में 600 मेडिकल कॉलेजों और 20 एम्स में अंगदान की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए योजनाएं बनाई जा सकती हैं। भारत सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम के लिए 149.5 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था। राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) इस दिशा में कार्यरत है, लेकिन इसके कार्यक्रम सीमित होते जा रहे हैं।
मस्तिष्क मृत्यु की स्थिति में मरीज को अंगदान के लिए जीवन रक्षक प्रणाली पर रखना आवश्यक होता है, लेकिन इसकी लागत परिजनों से वसूली जाती है। अगर सरकार इस खर्च को उठाए, तो अंगदान में वृद्धि संभव है।
सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों में अंगदान का प्रचार-प्रसार करने से भी जागरूकता बढ़ाई जा सकती है
अंगदान की प्रक्रिया के लिए समय सीमा का पालन करना आवश्यक है। इसके लिए हवाई एंबुलेंस या हरित गलियारे की व्यवस्था की जानी चाहिए। यह प्रक्रिया आसान है और इसे स्थानीय स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।
organ donation को प्रोत्साहित करने के लिए, इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना, अंगदान करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन देना, और सरकारी लाभ योजनाओं में शामिल करना आवश्यक है। इसके अलावा, शासकीय कार्यालयों और अस्पतालों में organ donation को विज्ञापित करने से भी जागरूकता बढ़ाई जा सकती है।
वर्ष 2022 के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के आंकड़ों के अनुसार, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, और मध्यप्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में अंगदान के परिणाम निराशाजनक हैं। गोवा, हिमाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम अभी भी जीवन रक्षक अंगों के दान में शून्य की स्थिति में हैं।
देश में अंगदान के लिए जागरूकता फैलाने और संसाधनों का विकास करने की सख्त आवश्यकता है।